उत्तर प्रदेश में सड़क सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए ‘हेलमेट नहीं, तो पेट्रोल नहीं’ अभियान चलाया जा रहा है। इस अभियान ए आरटीओ शामली रोहित राजपूत कार्यवाही करते हुए 15 चालान काटें। हालांकि दोपहिया वाहनों की सवारी करने वाले लोगों को खुद ही इसे लेकर संजीदा होने की जरूरत है, लेकिन उम्मीद की जानी चाहिए कि इस अभियान से उनके भीतर जिम्मेदारी की भावना आएगी। एक सितंबर से शुरू हुए इस अभियान को विधिसम्मत होने के साथ जनहितैषी भी कहा जा सकता है।गौरतलब है कि भारत में करीब तीस फीसद हादसों में दुपहिया चालक ही शिकार होते हैं। इनमें मौत का सबसे बड़ा कारण हादसे के समय हेलमेट नहीं पहनना माना जाता है। सवाल है कि यातायात नियमों के मुताबिक हेलमेट अनिवार्य होने पर भी अगर लोग नियमों का पालन नहीं करते, तो इसका नुकसान किसे उठाना पड़ता।हैरत की बात है कि जुर्माने के प्रावधान के बावजूद लोग बिना हेलमेट पहने वाहन चलाते दिखते हैं। उन्हें न तो नियम-कायदे की परवाह होती है और न ही अपने प्राणों की। जहां सड़क पर यातायात पुलिस की जांच ढीली होती है, वहां दुपहिया पर पीछे बैठे लोग अमूमन हेलमेट नहीं पहनते। जबकि हादसे की स्थिति में जोखिम का स्तर उनके लिए भी समान होता है।गौरतलब कि पिछले वर्ष भी यह अभियान चलाया गया था, लेकिन सच यह है कि लोगों के बीच हेलमेट पहन कर अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने को लेकर पर्याप्त संवेदनशीलता अभी विकसित नहीं हुई है। कुछ समय पहले केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री ने बताया था कि पिछले वर्ष हुए हादसों में तीस हजार लोगों की मौत हेलमेट नहीं पहनने की वजह से हो गई। यानी देश में हर दिन औसतन अस्सी लोगों की जान सिर्फ हेलमेट नहीं पहनने के कारण चली गई।सवाल है कि इस संबंध में कानून होने और उससे भी ज्यादा अपने हित में होने के बावजूद लोग हेलमेट की उपयोगिता की अनदेखी क्यों करते हैं। किसी हादसे की स्थिति में शरीर के बाकी हिस्से में लगी चोट के मुकाबले सिर पर लगी चोट जिंदगी को जोखिम में डाल देती है। उपचार के बाद भी जीवन भर जटिलताएं बनी रह सकती हैं। यह ध्यान रखने की जरूरत है कि अगर दोपहिया वाहन चलाते हुए हेलमेट पहना जाए तो मौत की आशंका को बहुत कम किया जा सकता है।
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